Priyanka06

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लेखनी प्रतियोगिता -17-May-2022 अधूरी ख्वाहिशें

रचयिता-प्रियंका भूतड़ा

शीर्षक-अधूरी ख्वाहिशें

आसमान की चादर ओढ़े
टिमटिमाते सितारे की ओज में
ठंडी हवा के आगोश में
शशि की शीतलता में
फर्श पर हम लेटे थे

मन किया मेरा
आज मैं कुछ देर सो जाती हूं
लेकिन कुछ यादें हमें सताती हैं
नींद नहीं आने देती है
कुछ ख्वाइश है मेरी
 लेकिन बहुत तड़पाती है

सोचती रहती हूं मैं
एक चेहरे पर मुखोटे, होते आज हजार 
आज समझ पाना ,किसी को कहां आसान
गुरुर की चादर में लिपटा है जमाना
जमाने की भीड़ में कहां मिलता है रहमान

अधूरी ख्वाहिशें लिए ही उम्र ढल गई
जमाने में हो अरमान पूरा
ऐसा मुकद्दर कहां है मेरा
पाबंदियों की जंजीरों ने
हमें जकड़ कर रख दिया
हमारी चादर को सिमट कर रख दिया

आसमान की चादर ओढ़े,
ख्वाइशें को बुनते -बुनते,
सफेद चादर में हम ,आज लिपट कर चले गए।



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15 Comments

Neelam josi

21-May-2022 03:35 PM

Very nice 👌

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Mohammed urooj khan

18-May-2022 06:41 PM

Nice mam

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Shrishti pandey

18-May-2022 11:12 AM

NIce

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